Ut Jaag Pathik Bhor Bhaee
उठ जाग पथिक भोर भई
उठ जाग पथिक भोर भई, अब रैन कहाँ जो तू सोवत है
जो जागत है सो पावत है, जो सोवत है वो खोवत है
खोल नींद से अँखियाँ जरा और अपने प्रभु से ध्यान लगा
यह प्रीति करन की रीती नहीं प्रभु जागत है तू सोवत है
उठ जाग पथिक भोर भई, अब रैन कहाँ जो तू सोवत है
जो कल करना है आज करले जो आज करना है अब करले
जब चिडियों ने खेत चुग लिया फिर पछताये क्या होवत है
उठ जाग पथिक भोर भई, अब रैन कहाँ जो तू सोवत है
नादान भुगत करनी अपनी ऐ पापी पाप में चैन कहाँ
जब पाप की गठरी शीश धरी फिर शीश पकड़ क्यों रोवत है
उठ जाग पथिक भोर भई, अब रैन कहाँ जो तू सोवत है
– वंशीधर शुक्ल
Leave a Reply